आजकल हिंदू राष्ट्र को लेकर देश में चर्चाओं का माहौल गर्म है। एक वर्ग इसे समर्थन दे रहा है तो दूसरा विरोध। धार्मिक यात्राएँ और संगोष्ठियाँ हो रही हैं, लेकिन यह मुद्दा धार्मिक और सांप्रदायिक विवादों में उलझा हुआ है। भारतीय समाज में धार्मिक और जातिगत भिन्नता स्वतंत्रता से पहले से ही विद्यमान है। इस कारण कई युद्ध हुए, मानव हत्याएँ हुईं, और देश विभाजन तक हुआ। विभाजन के समय इस समस्या का स्थायी समाधान किया जा सकता था, लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने नहीं दिया। परिणामस्वरूप, लाखों निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। यदि उस समय धार्मिक आधार पर स्पष्ट विभाजन हो जाता, तो शायद वर्तमान परिस्थितियाँ अलग होतीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और भारत को हमेशा के लिए इस त्रुटि का दंश झेलना पड़ा। भिन्नताओं के बावजूद एकता संभव भले ही भारत में धार्मिक और सांप्रदायिक विविधता है, परंतु हमारी परंपरा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की रही है। आध्यात्मिक दृष्टि से सभी धर्म एक ही दिशा में जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक स्वार्थ ने समाज में वैमनस्य को बढ़ावा दिया है। समस्या की जड़: राजनीतिक और धार्मिक कट्टरता राजनीति में तुष्टिकरण की नीति और धार्मिक कट्टरता दो ऐसे कारण हैं, जो समाज में भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। राजनीतिक स्वार्थ: धर्म और जाति आधारित राजनीति से न तो देश की शांति संभव है और न ही इसकी संप्रभुता सुरक्षित रह सकती है। धार्मिक कट्टरता: धर्म एक व्यक्तिगत आस्था का विषय है। इसका उद्देश्य शांति और सह-अस्तित्व है, न कि किसी अन्य धर्म के प्रति ईर्ष्या और घृणा। समाधान की दिशा में कुछ सुझाव

1. एक राष्ट्र, एक ध्वज: राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अलावा किसी अन्य ध्वज के प्रदर्शन पर रोक होनी चाहिए।

2. भारत की मूल पहचान: देश को ‘भारत’ के नाम से पहचाना जाए। सभी धर्मों को ‘भारतीय’ के रूप में मान्यता दी जाए, जैसे भारतीय सनातन, भारतीय इस्लाम आदि।

3. सर्व धर्म स्वीकार्यता: धर्मनिरपेक्षता के बजाय संविधान में ‘सर्व धर्म स्वीकार्य’ का प्रावधान हो। सभी धार्मिक स्थलों के विवाद समयबद्ध रूप से निपटाए जाएँ।

4. धार्मिक साहित्य की समीक्षा: सभी धर्मों के साहित्य से हिंसा और घृणा फैलाने वाले अंश हटाए जाएँ।

5. समान कानून: जाति और धर्म आधारित विशेष कानून समाप्त कर समान नागरिक संहिता लागू की जाए।

6. शिक्षा में समानता: 18 वर्ष तक की शिक्षा सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य हो। स्कूलों में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया जाए।

7. धार्मिक निर्माण पर नियंत्रण: नए धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक हो।

8. धार्मिक गतिविधियों की सीमा: धार्मिक गतिविधियाँ संबंधित स्थलों तक सीमित रहें।

9. समान मुआवजा नीति: आर्थिक वर्गीकरण के आधार पर सरकारी लाभ और मुआवजा सुनिश्चित किया जाए।

समानता और न्याय के सिद्धांतों को लागू कर देश में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को सशक्त किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि धार्मिक और जातिगत भेदभाव को समाप्त कर समाज में शांति और सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त किया जाए।