आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।

आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।

आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।