UCC Archives - Tiranga Speaks https://tirangaspeaks.com/tag/ucc/ Voice of Nation Mon, 10 Feb 2025 08:02:30 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 यू सी सी – कहीं पे तीर कहीं पे निशाना , नहीं चलेगा कोई बहाना ।  https://tirangaspeaks.com/ucc-the-direction/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ucc-the-direction Mon, 10 Feb 2025 08:02:30 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=161 भारतीय जनता पार्टी ने अपने पहले ही घोषणा पत्र में संविधान की अपेक्षा के अनुरूप यू सी सी लागू करने की घोषणा की थी। समय बीतता चला गया और बहुत देर से उत्तराखंड में इस संबंध में पहला कदम रखा गया। बहुत से विद्वानों के विचार, नुक्कड़ चर्चाओं के बाद इस संबंध में कमेटी की [...]

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भारतीय जनता पार्टी ने अपने पहले ही घोषणा पत्र में संविधान की अपेक्षा के अनुरूप यू सी सी लागू करने की घोषणा की थी। समय बीतता चला गया और बहुत देर से उत्तराखंड में इस संबंध में पहला कदम रखा गया। बहुत से विद्वानों के विचार, नुक्कड़ चर्चाओं के बाद इस संबंध में कमेटी की घोषणा सरकार द्वारा की गई जिसके बाद निरंतर व घटकों से चर्चा, जनता से राय शुमारी चलती रही और अंततः यू सी सी कमेटी की रिपोर्ट सरकार को साउंड दी गई और अति उत्साह पूर्वक इस रिपोर्ट को सरकार ने स्वीकृत कर क़ानून का रूप दे दिया । जिस तरह से जोशोर के साथ क़ानून का आग़ाज़ हुआ, उसने निहित विषय सामग्री को देख समझ प्रदेश में चर्चाओं का फोर चल निकला । निकलना स्वाभाविक था क्योंकि कई कहावत एक साथ चरितार्थ हो गई। पहली कहावत – खोदा पहाड़ निकली चुहिया । जिस बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद की जा रही थी , ऐसा कुछ विशेष नहीं हुआ। जितनी पड़ी जान प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी , कहीं सुरसुराहट भी नज़र नहीं आयी माँओं तूफ़ान से पहली भी शांति थी और बाद में भी।दूसरी कहावत – कहीं पे तीर कहीं पे निशाना। संविधान की आत्मा और भारतीय बहुसंख्यक समाज की भावनाओं के अनुरूप क़ानून का जो प्रारूप सामने आया उससे निराशा और सरकार की मंशा पर शक स्वाभाविक रूप से सामने आ गया। पहली बात यू सी सी का अर्थ और अभिप्राय ही ऐसे क़ानून से है जो पूरे देश और समस्त नागरिकों पर एक समान लागू हो। कुछ नागरिकों को बाहर रखते हुए एक देश और एक क़ानून की धारणा ध्वस्त हो गई ।
ऐसी कई तकनीकी समस्या भी उत्पन्न हो गई जिससे कई परिस्थितियों में इसका पालन संभवतः न हो पाये। एक और किसी वर्ग की संस्कृति और प्रम्पराओं की धज्जियाँ उड़ी तो इसी नाम पर कुछ को क़ानून के दायरे से ही बाहर रखा गया । जिस समस्या से निजात पाने की आवश्यकता थी उसकी जंगल की आग की तरह नियंत्रण से बाहर हो जाने की स्थिति बनती दिखाई दे रही है। जिस विषय का यू सी सी के माध्यम से समाधान होना चाहिए था उल्टे उसे और गंभीर बना दिया गया । देखा जाय तो यू सी सी में हिंदू समाज के लिए कोई विशेष परिवर्तन की उम्मीद नहीं थी । ऐसा लग रहा था कि यू सी सी का उद्देश्य दूसरे वर्ग विशेषकर मुस्लिम वर्ग को भारत में एक समान क़ानून से मुख्य धारा से जोड़ने का था और वो प्रयास हुआ भी किंतु शायद तीर की गति और प्रभावी क्षेत्र इतना व्यापक हो गया कि जिस प्रदेश में यू सी सी ने जन्म लिया वहीं की संस्कृति को तार तार कर दिया । सारी मेहनत मानों विफलता में बदल गई। बेरोज़गारी की जनप्रतिक्रिय से अभी दामन छोटा भी न था कि एक दूसरी चिंगारी अनावश्यक ही सुलग उठी। लव जिहाद की जिस समस्या से पूरा प्रदेश सुलग रहा था यू सी सी ने मनों उसकी अनुज्ञप्ति ही जारी कर दी। शायद जनता के किसी भी वर्ग ने यह राय संबंधित कमेटी को न दी होगी कि लिव एंड रिलेशन को क़ानूनी मान्यता दे दी जाय। एक पक्ष द्वारा प्रतिक्रिया पर विचार हुआ होगा लेकिन लिव एंड रिलेशन विषय पर विचार करते हुए इसकी गंभीरता और दूरगामी प्रभाव को डर किनार कर दिया गया । अब जॉइन से क़ानून से लव जिहाद को रोका जाएगा ?
जिस संस्कृति का रोना रोकर जनता में रोष व्याप्त हो रहा था , बेटियाँ सूट केस में बंद हो रही थी , माँ बाप की नींद उड़ी रहती थी , यू सी सी में लिव एंड रिलेशन के प्रावधान को देखकर चाहती पीटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा । उत्तराखण्ड विशेषकर देहरादून शिक्षा का मुख्य केंद्र होने के कारण यहाँ पूरे देश से युवक का आगमन होता है। यही वह उम्र होती है जब हमारे बच्चे स्वतंत्रता के एहसास को आरंभ करते हैं, क्या सीखकर जाएँगे यहाँ से ? संपन्न परिवारों की लड़कियों को संपत्ति के लालच में और अधिक लव जिहाद का सामना करना पड़ेगा। ग़रीब वर्ग की लड़कियाँ बाहर से आने वाले संपन्न परिवारों के लड़कों की तरफ़ धड़ल्ले से आकर्षित होंगी। कोई सामाजिक डर, दबाव काम नहीं करेगा। शासन लव बर्ड्स को सुरक्षा देने के लिए विवश होगा कोई आश्चर्य नहीं कि इससे देह व्यापार में भी वृद्धि हो जाय। कुँवारी माताओं की संख्या न चाहते हुए भी इस क़ानून का दंश झेलेगी। इस नियम के पक्ष में अभी तक कोई सामाजिक विद्वान/शास्त्री सामने नहीं आया ही जिसने सरकार के इस निर्णय पर सकारात्मक टिप्पणी की हो। एक चिंगारी को दावानल में बदलते देर नहीं लगती वैसे भी सरकार के साथ बहुत दी समस्यायें लगी रहती हैं। उत्तराखण्ड की जनता वैसे भी किसी न किसी समस्या से त्रस्त होकर आंदोलित रहती है ऐसी परिस्थिति में यदि कोई लव जिहाद जैसी घटना हो गई तो स्थिति नियंत्रण से बाहर होते देर नहीं लगेगी। विषय जनभावनाओं से जुड़ा होने के कारण अत्यंत संवेदनशील है। सरकार को समय रहते इस पर विचार कर यू सी सी में लिव एंड रिलेशन में किए प्राविधानों को निरस्त कर देना चाहिए जो इस देव भूमि की संस्कृति और संस्कारों को कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता।

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झूठ बोले कौआ काटे । https://tirangaspeaks.com/%e0%a4%9d%e0%a5%82%e0%a4%a0-%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%8c%e0%a4%86-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%9f%e0%a5%87-%e0%a5%a4/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%259d%25e0%25a5%2582%25e0%25a4%25a0-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%2586-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2587-%25e0%25a5%25a4 Mon, 27 Jan 2025 16:58:01 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=66 उत्तराखण्ड समान आचार संहिता लागू कर देश का ऐसा करने वाला प्रथम राज्य बन गया है। इसके लिए मुख्य मंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं । उत्तराखण्ड को एक अध्याय आरंभ करने का अवसर मिला और उसने यह कर दिखाया, यह कोई छोटी बात नहीं । सच्चाई तो यह [...]

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उत्तराखण्ड समान आचार संहिता लागू कर देश का ऐसा करने वाला प्रथम राज्य बन गया है। इसके लिए मुख्य मंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं । उत्तराखण्ड को एक अध्याय आरंभ करने का अवसर मिला और उसने यह कर दिखाया, यह कोई छोटी बात नहीं । सच्चाई तो यह है कि केंद्र को जहां यह कदम पूरे देश में उठाना चाहिए था, उसकी हिम्मत नहीं हुई । अब इसे डर कहा जाय अथवा छाछ को भी फूंक मारकर पीने की आदत। केंद् सरकार ने पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू न कर परोक्ष रूप से उत्तराखंड में प्रयोग कर प्रतिक्रिया जानने का प्रयोग किया है। फिर भी केंद्र की नीति के अनुसार ही सही, एक ऐतिहासिक कार्य का शुभारंभ हुआ है। बहुत दिन पहले एक गीत सुना था “ झूठ बोले कौआ काटे” समान आचार संहिता के नाम पर क़ानून लागू कर कोई कितनी भी अपनी पीठ थपथपाए लेकिन इसे किसी हसीना के साथ इशारे बाज़ी कर उसके दिल की बात जानने से ज़्यादा कुछ और नहीं समझना चाहिए । जो क़ानून सामने लाया गया है उससे सरकार की मंशा का संकेत भले ही मिलता हो लेकिन उसकी साफ़ नीयत पर संदेह तो निश्चित रूप से बनता है। क्या वास्तव में उक्त क़ानून यह साबित करता है कि सरकार धर्म निरपेक्ष, जातिनिरपेक्ष और क्षेत्र निरपेक्ष होकर शासन चलाना चाहती है? मेरी राय तो बिलकुल भिन्न है। यह एक ऐसा विषय है जिसे ऊपरी स्तर पर नहीं जड़ से समाप्त करने पर ही उपयुक्त परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं । देश के छोटे से एक राज्य में शुरुआत कर केवल बाक़ी देश को संदेश दिया जा सकता है लेकिन जब तक कोई आचार संहिता पूरे देश में लागू न हो इसे ईमानदारी का प्रयास तो बिलकुल नहीं कहा सकता है। क्या झूठ बोलकर सच्चाई छिपाई जा सकती है? शायद नहीं और कदापि नहीं । नाम रखा गया “ समान नागरिक संहिता “ जरा सोचिए क्या भारत या उसके किसी राज्य में नागरिकों को समान समझा गया है? आज भी दलित, पिछडे, अनुसूचित , बिहारी, बंगाली, पहाड़ी और देशी जैसे शब्द हमारी समानता का मुँह छिदाते नज़र आते हैं । ब्राह्मण , ठाकुर को उनकी जाति से पुकार लो तो कोई बात नहीं भले ही पुकारने का तरीक़ा कितना ही अपमानजनक क्यों न हो लेकिन वहीं कुछ नागरिक हैं जिनकी जाति का नाम लेना भी अपराध है फिर कौन सी समान आचार संहिता काम करती है? सरकार स्वयं किसी जाति को प्राथमिकता देकर संतरी से मंत्री तक बनाते समय समानता की संहिता का पालन नहीं करती । एक बुद्धिमान युवा को कम बुद्धिमान युवा के सापेक्ष अवसर नहीं मिलता , देश की सभी जातियाँ अपनी जाति और क्षेत्र के नाम पर राजकीय लाभ प्राप्त करती हैं तब समान आचार संहिता  से कौन में छिपकर बेठ जाती है ? दो चार परिस्थितियों और एक प्रदेश में समान आचार संहिता के नाम पर झूठा प्रचार करके देश के नागरिकों को समानता का अधिकार नहीं मिल सकता। जहां देश के दूसरे क्षेत्र के नागरिक को प्रदेश में प्रतिबंधित करने की तैयारी चल रही हो वहाँ समान नागरिक सहिता का मज़ाक़ बनकर रह जाएगा । हम लोग भारतीय संस्कृति की बात करते हैं , सनातन का ढिंढोरा पीटते हैं किंतु देवभूमि में लिव एंड रिलेशनशिप को क़ानूनी सहमति देते हैं । जिस लव जिहाद के विरुद्ध कठोर रुख़ अपनाते हैं वहीं समान नागरिक संहिता के नाम पर क़ानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं।

भारतीय संस्कृति के विरुद्ध लिव एंड रिलेशन की अनुमति के क्या भयंकर परिणाम हो सकते हैं , यह सोचकर आपकी रूह काँप जाएगी । कोई बड़ी बात नहीं कि हमारी भोली भली बच्चियाँ कुँवारी माँ बनकर एकल मातापिता की संख्या को आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा दें उस समय आप अपनी देवभूमि की देवसंस्क्रती पर रोने के अलावा कुछ नहीं कर पायेंगे। क्या इसे ही समान नागरिक संहिता कहते हैं ? यह विचार लॉइन सी समानता का द्योतक है? अगर मश्तिष्क के किसी कोने में समान नागरिक संहिता का विचार भी उपजा है तो निश्चित रूप से इसे सकारात्मक और क्रांतिकारी सोच कहा जा सकता है लेकिन इसे टुकड़ों में खिलाकर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो सकतै। समान नागरिक संहिता राम राज्य की कल्पना से कम नहीं लेकिन जिस गति से इसे लागू करने की नीति चल रही है उसके लिये राम राज्य तक का इंतज़ार करना पद सकता है। समस्या का तीव्र , सटीक इलाज आवश्यक है अन्यथा बीमारी एक अंग में ठीक होगी तब तक दूसरा अंग सड़ जाएगा । क्या है उपाय ? सरकार को समान नागरिक संहिता देश में लागू करनी है तो सबसे पहले अपनी नीतियों को सभी नागरिकों के लिए समान करना होगा। छोटे छोटे जाति, क्षेत्र में बँटे नागरिकों के मन से अलगाव की भावना को समूल नष्ट करना होगा । सर्वप्रथम प्रदेश सरकारों को क्षेत्रीय भावना के वशीभूत होकर देश की संप्रभुता को प्राथमिकता देने के लिए तैयार और बाध्य करना होगा। देश से सर्वप्रथम जातिगत आधार पर चल रही शासन व्यवस्था को समाप्त कर एक समान नीति बनानी होगी । सम्मान सभी जाति और धर्म का अधिकार है।समान न्याय सबका अधिकार है और समान अवसर भी सभी नागरिकों का अधिकार है ऐसे में वर्तमान कुछ जातिगत क़ानून समाज में असमानता पैदा करते हैं जो असंतोष को जन्म देती है और असंतोष कहीं न कहीं उग्रता पैदा करता है। सब के लिये समान क़ानून और सबके लिए समान आचार संहिता तभी संभव है जब सभी नागरिकों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त हो। इसका तत्पर्य यह बिलकुल नहीं निकाला जाना चाहिए कि सरकार किसी पिछडे की मदद न करे अथवा किसी विकास में पिछले क्षेत्र का विकास न करे । वास्तविकता यह है कि देश की आज़ादी के ७५ वर्ष के बाद किसी नागरिक के पिछड़ेपन का आधार उसकी जाति नहीं बल्कि उसे मिल रहे अवसरों की कमी से उसका आर्थिक रूप से पिछड़ना है। आज ऐसी कोई जाति नहीं जिसमें पिछडे नागरिक  हों । सक्षम व्यक्ति न हों । यही वह ग्रुप है जो सरकार की जातिगत व्यवस्था का सर्वाधिक लाभ उठाते हैं । यही कारण है कि देश का ग़रीब ग़रीब ही बनकर रह जाता है और उसी के सक्षम साथी उससे उसके अवसर छीनकर आगे बढ़ जाते हैं। धर्म के नाम पर कटुता का खेल अपने चर्म पर है किंतु सरकार स्वयं सभी धर्मों के साथ न समान व्यवहार करती है और न ही सभी धर्म एक राष्ट्रीय आचार संहिता का पालन करते हैं। सबके लिए समान व्यवस्था होती तो किसी कट्टरता का स्थान ही नहीं बचता।

समान अधिकार और समान क़ानून होता तो देश में शरीयत , वक़्फ़ और पूजा स्थल अधिनियम और हिंदू कोड बिल जैसे क़ानूनों का कोई स्थान नहीं होता । सरकार को विचार करना चाहिए , मतभेदों और असहिष्णुनता, भेदभाव जैसी बुराइयों को मिटाना है तो छर्रे छोड़कर नहीं बड़े उपाय से काम लेना होगा। जातिगत व्यवस्था के स्थान पर आर्थिक स्थिति के पैमाने पर अपनी नीतियों का निर्धारण करना होगा। सभी जातिगत क़ानून बदलने अथवा समाप्त करने होंगे। धार्मिक आश्चर्य के नाम पर अलगाव और कट्टरता को समाप्त कर राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि दर्जा सुनिश्चित करना होगा। तभी समान नागरिक संहिता के पवित्र उद्देश्य और लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

 

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