uttrakhand Archives - Tiranga Speaks https://tirangaspeaks.com/category/uttrakhand/ Voice of Nation Sat, 01 Mar 2025 00:31:17 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 Uttarakhand will be new Thailand sex capital? https://tirangaspeaks.com/uttarakhand-will-be-new-thailand-sex-capital/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=uttarakhand-will-be-new-thailand-sex-capital https://tirangaspeaks.com/uttarakhand-will-be-new-thailand-sex-capital/#respond Sat, 01 Mar 2025 00:31:17 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=171 हिंदुस्तान में लड़का लड़की यदि प्रेमपाश में फँस जाए तो उन्हें चोरी छिपे किसी स्थान पर मिलना पड़ता था और यदि किसी परिचित की नज़र पड जाए अथवा किसी पुलिस कर्मचारी को शक हो जाए तो बस जान मुसीबत में आ जाती थी और कभी पड़ोस वाली आंटी ने देख लिया तो क़यामत निश्चित थी [...]

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हिंदुस्तान में लड़का लड़की यदि प्रेमपाश में फँस जाए तो उन्हें चोरी छिपे किसी स्थान पर मिलना पड़ता था और यदि किसी परिचित की नज़र पड जाए अथवा किसी पुलिस कर्मचारी को शक हो जाए तो बस जान मुसीबत में आ जाती थी और कभी पड़ोस वाली आंटी ने देख लिया तो क़यामत निश्चित थी । शायद ऐसे जोड़ों का दर्द उत्तराखंड सरकार ने समझ लिया फिर क्या था युवा मुख्यमंत्री की युवा सरकार ने दरियादिली का ऐसा नमूना पेश किया कि उत्तराखंड क्या पूरे देश की संस्कृति को ताक पर रखकर छोड़ दिया ।

यू सी सी के नाम पर ऐसा कानून बना दिया कि क्या हिंदू और क्या मुस्लिम , सिख हो या ईसाई , सबको लाज शर्म छोड़कर बे झिझक अय्याशी करने की अनुमति मिल गई। अभी तक ऐसे जोड़ों को वैधानिक अनुमति नहीं थी लेकिन अब तो पंजीकरण के साथ ही पूर्ण सुरक्षा की गारंटी भी मिल गई। पंजीकरण कराइए और ठाट से एक साथ रहिए , संबंध बनाइए और प्यार के दुश्मन माता पिता , ताऊ चाचा , भाई और मामा आदि से पुलिस आपकी रक्षा करेगी क्योंकि सरकार ने अब आपको ऐसा करने का लाइसेंस जो दे दिया है ।कोई कहे कि इससे संस्कृति को हानि पहुंचेगी ? अरे भाई सरकार की दूर दृष्टि देखिए , हो सकता है उत्तराखंड का कोई नीति निर्धारक सरकारी खर्च पर थाईलैंड भ्रमण पर गया हो और सरकारी आय और रोजगार बढ़ाने के इस अनुपम फार्मूले को वहाँ से चोरी छिपे उत्तराखंड के लिए आयात कर लाया हो ।उत्तराखंड में लव जिहाद जेसी परिभाषित बीमारी समाप्त हो जाएगी अर्थात् यूँ कहें कि म्यूटेटेड होकर दूसरे चरण में आ जाएगी ।

सारे होटल, स्टेहोम, फ़ार्म हाउस और रिसोर्ट्स का धंदा चल निकलेगा । युवाओं को सेक्स की आज़ादी मिल जाएगी , वे सरकार का विरोध छोड़कर इस नये व्यवसाय में आय के श्रोत ढूँढेंगे। मैटरनिटी हॉस्पिटल्स की चाँदी और बहू विवाह ( जो प्रतिबंधित है) का विकल्प भी मिल जाएगा । अनुबंध शादियां होने लगेंगी। कुछ लोगों की तो मति मारी गई है जो लिव एंड रिलेशन का विरोध कर रहे हैं । जनाब कुछ दिन इंतज़ार करिए उत्तराखंड की तुलना थाईलैंड क्या स्विट्ज़रलैंड से भी होने लगेगी। जनता के साथ सरकार का रेवन्यू बढ़ जाएगा जो प्रदेश के विकास में काम आयेगा । आप मूल निवास की बात भूल जाएँगे और प्रदेश में पूरे विश्व के निवासी मूल निवासी उत्पन्न कर देंगे । हो सकता हे २५ वर्ष बाद आपको नई नस्ल का मुख्य मंत्री ही मिल जाए फिर तो प्रदेश राष्ट्रीय एकता और भिन्नता में एकता का उदाहरण ही बन जाएगा । दो चार माता पिता अपनी इज्जत का रोना रोते आत्महत्या कर भी लें तो सरकार पर क्या प्रभाव पड़ता है? आप सोचेंगे अजीब सिरफिरा इंसान हे , लाइव एंड रिलेशन का समर्थन कर रहा ही या आनेवाले भूचाल की भविष्यवाणी ? जनाब मेरा तरीका कोई भी हो लेकिन आप भी वही समझ रहे हैं जो में कहना छह रहा हूँ। आख़िर इस विषय का यू सी सी से रिश्ता ही क्या था की आपने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ घुसा दिया।

शहद का इतना लालच भी ठीक नहीं और न ही युवाओं को खुश करने का उचित माध्यम । उत्तराखंड के युवा किसी अलग संस्कृति से नहीं जन्मे , उन्हें रोजगार की आवश्यकता है जिससे उनका भविष्य भी बने और शादी भी हो जाए । इस लिव एंड रिलेशन का लॉलीपॉप देकर उन्हें मत भटकाइए । एक और भारतीय जनता पार्टी सनातन की संस्कृति की बात करती ही और दूसरी और ऐसा निर्णय? घोर आश्चर्य हो रहा हे । आधुनिकता के नाम पर जो परोसा गया हे उससे सनातनी सोच में पद गया हे की कहीं उसे ठगा तो नहीं जा रहा हे । कोहरा छटेगा और सच्चाई सामने आयेगी और फिर ऐसा जलाल आ सकता हे की सब कुछ साफ़ हो जाए । ये चिंगारी कहीं अपने ग़रीब को ही जलाकर रख न कर दे इसलिए वक्त रहते चैतन्य होने की आवश्यकता हे । और बहुत विषय हैं ध्यान देने के लिए ।

ऐसे समय जब उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए उत्तराखंडी जनता अपनी आवाज उठा रही हे, लिव एंड रिलेशन का मुद्दा सरकार के लिए परेशानी का सबब न बन जाए। धीरे धीरे हम फिर चुनाव की और बढ़ रहे हैं और सरकार हे कि विपक्ष को मसले सप्लाई करने पर उतारू हे । देखते हैं भविष्य उत्तराखंड को कहाँ प्रस्थापित करेगा ।

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देश चाहिए या प्रदेश ? https://tirangaspeaks.com/%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6-%25e0%25a4%259a%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%258f-%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6 Thu, 30 Jan 2025 16:38:32 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=90 प्रकृति का नियम है कि पृथ्वी पर विभिन्न समुदाय अपने सर्वाइवल के लिये संघर्ष करते रहें और सभ्य समाज का मंत्र है कि एक होकर सभी समस्याओं का हल खोजें । यही भारत था जो एक होकर अंग्रेजों से लड़ रहा था। कोई पंजाब से तो कोई बंगाल से , कश्मीर से कन्याकुमारी तक सबका [...]

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प्रकृति का नियम है कि पृथ्वी पर विभिन्न समुदाय अपने सर्वाइवल के लिये संघर्ष करते रहें और सभ्य समाज का मंत्र है कि एक होकर सभी समस्याओं का हल खोजें । यही भारत था जो एक होकर अंग्रेजों से लड़ रहा था। कोई पंजाब से तो कोई बंगाल से , कश्मीर से कन्याकुमारी तक सबका एक ही ध्येय था । हमारा भारत। आज़ाद हुआ तो सारी सल्तनतें भी भारत के तिरंगे की शरण में आ गई। लेकिन उसके बाद मानों भारत को किसी की नज़र लग गई। देश में भाषाई और सांप्रयदिक उन्माद ने ऐसा जन्म लिया कि हमारी सोच संकुचित होती चली गई। देश में प्रदेशों की स्थापना प्रशासनिक व्यवस्थाओं को सुचारू करने के लिए संघीय ढाँचे के स्वरूप में हुई थी न कि किसी विशेष संप्रदाय, भाषा अथवा क्षेत्र के आधार पर। पहाड़ भी हमारे थे, मैदान ,पठार, जंगल , नदियाँ और समुद्र भी हमारे थे। देश में अपने संविधान का निर्माण हुआ तो देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले।

कश्मीर में धारा ३७० और ३५ए के अनुमोदन ने सभी प्रदेशों में इसी तरह के क़ानून के चलन को प्रोत्साहित कर दिया फिर वो हिमाचल, उत्तराखण्ड हो या उत्तर पूर्वी राज्य अथवा कोई अन्य राज्य , किसी न किसी रूप में क्षेत्रवाद का जन्म हुआ है।इसी के साथ अवसरों के बँटवारे के लिए सभी जातियों में भी अपने लिए संघर्ष की भावना जगी है। तेरा मेरा की सभ्यता ने कहीं न कहीं देश को अनेक विचारधाराओं में बाँट कर रख दिया।जहां यह स्थिति देश की संप्रभुता के लिये विनाशकारी है वहीं कुछ मौलिक अधिकारों की अवहेलना क्षेत्रीय स्तर पर असंतोष का कारण बन रही है। देश में विविधता के चलते अधिकांश कमजोर व माध्यम वर्ग अपने ही क्षेत्र में नौकरी और व्यवसाय करना चाहता है । इसके पीछे उसकी संस्कृति, प्राकृतिक वातावरण और धन की कमी भी बड़ा कारण है। ऐसे में यदि मूल निवास का प्रश्न उठता है तो उसे उचित ही कहा जायेगा। यदि स्थानीय संसाधनों पर भी स्थानीय युवाओं को स्थान न मिले और उस प्राथमिकता को भी दूसरे क्षेत्रों के संपन्न व्यक्ति छीन ले तो निश्चित रूप से मूल निवासी अपने को ठगा महसूस करेगा। इसलिए जनहित में कम से कम ५०% अवसर मूल निवासियों को मिलने चाहिए लेकिन न्याय हित में न्यूनतम निश्चित अवधि से प्रदेश में निवास कर रहे और शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

जहां तक भू क़ानून का प्रश्न है ऐसा क़ानून कहीं भी देश हित में नहीं है। हाँ इसे सीमित रूप में लागू किया जा सकता है। जरा सोचिए यदि कठोर भू क़ानून सभी प्रदेश समान रूप से लागू कर दे तो कितनी भयानक स्थिति हो सकती है। कल व्यापार पर भी ऐसे क़ानून की तरह माँग उठने लगे और सरकार मान भी ले तो सभी प्रदेशों में किसी न किसी उपभोक्ता वस्तु का अकाल पड जाएगा। दूसरी और अपनी आवश्यकता और परिस्थितियों के कारण मजबूर लोगों को स्थानीय भू माफिया के अलावा कोई ख़रीदार नहीं मिलेगा ।ऐसी स्थिति में उसे वाजिब दाम नहीं मिलेंगे और स्थानीय भूमाफिया उसका शोषण करेंगे। उचित है कि केवल अधिसूचित क्षेत्र में ही निश्चित सीमा तक दूसरे प्रदेश के निवासियों को भूमि ख़रीदने की अनुमति दी जाय बशर्ते उससे उस स्थान की प्रकृति में कोई परिवर्तन न हो। देश के प्रत्येक नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में निवास करने के मौलिक अधिकार का तो कम से कम सम्मान होना ही चाहिए। विश्व में प्रकृतिकऔर खगोलीय स्थितियाँ तेज़ी से बदल रही हैं। भारत भी उससे अछूता नहीं है। छोटे राज्यों में सूचनाएँ तेज़ी से फैलती हैं और वहाँ की जनता की सरकार से अपेक्षायें भी अधिक होती हैं। ऐसे में असंतोष की एक चिंगारी बड़े संघर्ष को जन्म दे सकती है।

ऐसा ही कुछ उत्तराखण्ड में भी देखने को मिला। प्रदेश पहले ही मूल निवास और सख़्त भूक़ानून को लेकर चिंतित था । इससे पहले कि उक्त दोनों माँगों पर सरकार कुछ विचार करती, भ्रष्टाचार का एक बड़ा मुद्दा खड़ा हो गया और इसी के चलते सचिवालय में ऊर्जा सचिव के साथ बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष की कहसुनी हो गई। जो भी हुआ उसे दोनों ही स्तर पर उचित नहीं ठहराया जा सकता और किसी जनसेवक अधिकारी के स्तर पर तो बिलकुल नहीं। स्थिति कोई गंभीर नहीं थी, भ्रष्टाचार का मामला होने के कारण किसी राजनीतिक कार्यकर्ता का विचलित होना स्वाभाविक रूप से अपेक्षित हो सकता है लेकिन किसी जनसेवक की हठधर्मी को उपयुक्त व्यवहार नहीं ठहराया जा सकता । परिस्थिति को कूटनीतिक व्यवहार से टाला भी जा सकता था । व्यवस्था सुधारने के स्थान पर दमनात्मक प्रतिक्रिया को अच्छी परंपरा नहीं कहा जा सकता । जनता के रोष का सामना किसी जनसेवक अधिकारी के लिये कोई विचित्र घटना नहीं होती ।

बेरोज़गार संघ की पुलिस भर्ती के लिए आयु सीमा बढ़ाने की माँग के लंबित रहते माहोल और ख़राब हो गया।आज के समय जब सत्ता में बैठी पार्टी भ्रष्टाचार के विरुद्ध शून्य सहनशक्ति की नीति अपनाने की बात करती हो वहाँ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते किसी नौकरशाह को सेवा विस्तार देना किसी के भी गले नहीं उतरता। सेवा विस्तार तो दूर की बात है, सतर्कता आयोग के निर्देशों के अंदर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते संबंधित नौकरशाह को तब तक संवेदनशील पद से दूर रखा जाना चाहिए जब तक कि संबंधित जनसेवक दोषमुक्त घोषित न हो जाये। सेवा विस्तार तो बहुत ही विशेष परिस्थितियों में जनसेवक की अति उत्तम छवि और सतर्कता क्लीयरेंस के बाद दिया जाना चाहिए। वर्तमान प्रकरण के तार सरकार में कहाँ तक जुड़े हैं, यह कहना तो जल्दबाज़ी होगा किंतु इससे सरकार की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित है। सरकार कितनी भी ईमानदार क्यों न हो किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से पल्ला नहीं झाड़ सकती। मुख्यमंत्री की चुप्पी जनता को संशय में डालने के लिए पर्याप्त है। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वहाँ जनता में फैला आक्रोश कुछ भी गुल खिला सकता है। छोटा प्रदेश है, आंदोलन की चिंगारी बड़ी तेज़ी से फैलती है और यहाँ की जनता शीघ्र उद्वेलित होकर प्रभावित होती है ऐसे में सरकार की छवि पर हल्का सा भी दबाव प्रदेश की फ़िज़ा को बदलने में कामयाब हो सकता है। देश और प्रदेश प्रथम है उसके सामने कोई भी नौकरशाह , नेता अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता । ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं हो सकता जिसके बिना प्रदेश का शासकीय कार्य अवरुद्ध हो जाये। इससे पहले कि यह असंतोष जनआंदोलन में परिवर्तित होकर नये मंच को जन्म दे दे , आदरणीय मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी प्रतिबद्धता को जनता के सामने सिद्ध कर देना चाहिए।वरना अफ़वाहों का बवंडर सरकार और पार्टी के लिए कितना विनाशकारी हो सकता है, इसकी कल्पना सहज ही लगायी जा सकती है।

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