Politics Archives - Tiranga Speaks https://tirangaspeaks.com/category/politics/ Voice of Nation Fri, 07 Feb 2025 17:32:01 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 गेर क़ानूनी घुसपैठ – एक अपराध https://tirangaspeaks.com/illegal-cross-border-entry/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=illegal-cross-border-entry Fri, 07 Feb 2025 17:32:01 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=154 यद्दपि कोई भी देश अपनी सीमा में बिना अनुमति घुसने को अपराध मानता है। कुछ परिस्थितियों में तो गोली तक मार दिये जाने अथवा पूरी ज़िंदगी जेल में डाल दिये जाने का प्रविधान है। इसे अंतर्राष्ट्रीय आचरण कहें अथवा संबंधित सरकार सत्कर्म कि पकड़े गये घुसपैठियों को उनके मूल देश को वापस भेज दे । [...]

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यद्दपि कोई भी देश अपनी सीमा में बिना अनुमति घुसने को अपराध मानता है। कुछ परिस्थितियों में तो गोली तक मार दिये जाने अथवा पूरी ज़िंदगी जेल में डाल दिये जाने का प्रविधान है। इसे अंतर्राष्ट्रीय आचरण कहें अथवा संबंधित सरकार सत्कर्म कि पकड़े गये घुसपैठियों को उनके मूल देश को वापस भेज दे । यदि ऐसे घुसपैठिए सही सलामत वापस कर दिये जायें तो उसे उस देश की भलमनसाहत ही कहा जायेगा। घुसपैठिए वैसे तो कई प्रकार के होते गहैं और उनके दूसरे देश में बिना अनुमति प्रवेश के अलग अलग कारण होते हैं। शरणार्थी इससे अलग होते हैं। कुछ घुसपैठिए आपराधिक परवृत्ति के होते हैं जिनके अवेध प्रवेश के पीछे कोई न कोई बड़ा अपराध होता है जैसे स्मगलिंग , हत्या अथवा आतंक । कुछ क़ानूनी सजा से बचने के लिए दूसरे देश में भाग जाते हैं तो कुछ सरकारों के छिपे एजेंडे को पूरा करने के लिए भी अपनी पहचान बदलकर दूसरे देश में घुस जाते हैं। घुसपैठियों का एक बहुत बड़ा भाग ऐसे लोगों का होता है जो अधिक धन कमाने के चक्कर में दूसरे देशों का रुख़ करते हैं। यदि संबंधित देश का वीज़ा न मिले तो ये लोग विभिन्न हथकंडों का प्रयोग करते हैं। ऐसी घुसपैठ के पीछे मानव तस्करी / कबूतर बाज़ी में लगे एजेंट मुख्य कारण होते हैं। ये एजेंट मोटी रक़म लेकर गेर क़ानूनी तरीक़े से इच्छुक व्यक्ति को दूसरे देश में घुसा देते हैं फिर यह घुसपैठिए अपनी पहचान छिपाकर जब तक संभव हो वहाँ कार्य करते रहते हैं। देखा गया है कि ऐसे घुसपैठियों का जीवन बहुत मुश्किलों भरा रहता है। बिना अनुमति घुसपैठ करने वाले नागरिक का सबसे बड़ा पहलू यह है कि वह ऐसा कर सबसे पहले अपने देश को बदनाम करते हैं । ऐसा संदेश जाता है मानो उस देश में वो भूखों मर रहे हैं अथवा उनके जीवन को गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो गया हो। कभी कभी उनके इस अपराध में पहले से विदेश में रह रहे उनके रिश्तेदार अथवा परिचित भी सहयोग करते हैं।किसी भी दशा में बिना अनुमति किसी देश में घुसना अपराध की श्रेणी में ही समझा जाएगा जिसे कोई भी देश सहज स्वीकार नहीं करता और इस अपराध से कठोरता से निपटता है। बहुत समय से यही समस्या हमारे देश में भी गंभीर रूप धारण किए हुए है इसमें अधिकतर बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए स्थिति को गंभीर बनाये हुए हैं। अपराध की गंभीरता और देश पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुए भी हमारे ही देश के नेता ऐसी घुसपैठ को समर्थन देते हैं । देश कमजोर नहीं, सरकार भी कमजोर नहीं लेकिन हमारे ही अपने हमें निर्बल बनाये हुए हैं । यहाँ तक कि देश की सुरक्षा और डामोग्राफी को भी गंभीर चुनौती उत्पन्न हो रही है। सीधी सी बात है कि ऐसे घुसपैठिए देश के अपराधी हैं और कठोर कार्यवाही के साथ उनके देश को वापस ज़बरदस्ती भेज दिये जाने के पात्र हैं। देश की सरकार चाहे तो इससे आगे भी कठोर कार्यवाही कर सकती है और इसके लिए कोई अन्य सरकार प्रतिरोध करने की अधिकारी नहीं है। अमेरिका द्वारा अपने देश में रह रहे अवेध भारतीयों को वापस भारत भेजने पर आजकल विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। अपने नागरिकों द्वारा ऐसा अपराध करने पर शर्मिंदा होने के स्थान पर हिंदुस्तान की बेइज्जत्ति की दुहाइयाँ दी जा रही हैं। हथकड़ी लगाने पर विरोध प्रकट किया जा रहा है। भला हमारे विपक्ष से कोई पूछे कि अपराधियों को कैसे रखा जाना चाहिए? ऐसा कौन सा सम्मानित कार्य ऐसे नागरिकों द्वारा किया गया है जिसके कारण उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए? वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश की छवि ख़राब कर अपने देश के प्रति भी अपराध किया है जिसके कारण वो किसी सहानुभूति के पात्र नहीं बल्कि उचित सजा के पात्र हैं। ऐसे में सरकार से विशेष मदद की गुहार लगाना मुझे तो हास्यास्पद और आश्चर्यजनक ही लगता है। क्या हम स्वयं पीड़ित होते हुए भी ऐसे अपराध को सामान्य रूप से ले सकते हैं। देश की छवि ख़राब करना कोई छोटा अपराध नहीं कहा जा सकता। ऐसे घुसपैठियों से देश के प्रति किसी प्रेम की अपेक्षा करना भी उचित नहीं होता। अमेरिका यदि अपराधियों को हथकड़ी लगाकर अपराधियों की भाँति सुपुर्द करता है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए बल्कि यदि अमेरिका चाहे तो इसके लिए खर्च किए धन की भी माँग कर सकता है। भारत को बिना संकोच अपने नागरिकों को वापस स्वीकार करना चाहिए। लेकिन भविष्य में कोई भारतीय ऐसा अपराध न करे इसके लिए भी उचित कदम उठाए जाने चाहिए। अब सही समय है, मौक़ा भी है और दस्तूर भी। भारत में रह रहे अवेध घुसपैठियों को ढूँढ ढूँढ कर उन्हें उनके देश को डिपोर्ट कर दिया जाना चाहिए । घुसपैठियों के एक बड़े भाग द्वारा भारत में अवेध तरीक़ों से आधार प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिये गये हैं । देश हित में नागरिक प्रमाणपत्रों की गहन जाँच कर सभी घुसपैठियों की पहचान कर ली जानी चाहिए। मतदाता सूचियों में बढ़ाये गये नागरिकों की विशेष पहचान होनी चाहिए और यदि कोई भारतीय क्रमचारी/नागरिक की ऐसे अपराध में संलिप्तता पायी ज़ाय तो उसके विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। कार्यवाही टुकड़ों में नहीं बल्कि एक निश्चित समय से पूरे देश में शुरू कर लक्ष्य प्राप्ति कर चलायी जानी चाहिए। सरकार किसी भी घुसपैठिए को पकड़ने में सहायता करने पर नागरिकों को उचित उपहार की घोषणा कर दे तो शायद एक माह के अंदर ही सारे घुसपैठिए पकड़े जा सकते हैं। घुसपैठ एक देश व्यापी समस्या है जो देश को कई प्रकार से कमजोर करने के साथ राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता पर प्रश्न खड़े करती है। इस विषय पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और न ही किसी स्तर पर स्वीकार्य होनी चाहिए।घुसपैठ को किसी प्रकार का समर्थन देश द्रोह है इसे उसी संदर्भ में देखा जाना उचित होगा।

 

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जातिवाद और क्षेत्रवाद का भेद , कथनी और करनी । https://tirangaspeaks.com/castismkesherwaad/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=castismkesherwaad Wed, 05 Feb 2025 16:11:38 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=97   वैसे तो हमारा देश राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत नागरिकों से भरा पड़ा है लेकिन यदि उत्तराखण्ड की बात करें तो शायद यह प्रदेश देश सेवा में अग्रणी निकले। पहाड़ का शायद ही कोई परिवार होगा जिसके किसी न किसी सदस्य ने किसी न किसी सैनिक बल के माध्यम से देश की सेवा न की हो [...]

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वैसे तो हमारा देश राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत नागरिकों से भरा पड़ा है लेकिन यदि उत्तराखण्ड की बात करें तो शायद यह प्रदेश देश सेवा में अग्रणी निकले। पहाड़ का शायद ही कोई परिवार होगा जिसके किसी न किसी सदस्य ने किसी न किसी सैनिक बल के माध्यम से देश की सेवा न की हो । राजनीति की बात करें तो भी इस प्रदेश का योगदान किसी से कम नहीं । गोविंद बल्लभ पंत, हेमवतिनंदन बहुगुणा , नारायण दत्त तिवारी जैसे प्रखर नेता हमारे देश को इसी प्रदेश की देन है।

पहले ऐसा सुनने में बहुत कम आता था कि जनता और नेता किसी जाति विशेष अथवा क्षेत्र विशेष के नाम पर राजनीति करें लेकिन इधर कुछ वर्षों से इसका चलन बढ़ता जा रहा है। नेहरू सरकार ने भले ही क्षेत्र विशेष को कुछ विशेष अधिकार देकर इस राजनीति के बीज बहुत पहले ही बो दिये हों लेकिन लंबे समय तक देश ऐसी भावना को दरकिनार करता रहा । आरक्षण के नाम पर भले किसी समुदाय को मुख्य धारा से अलग रखा गया हो परंतु किसी भी समुदाय में घृणा का स्थान कभी बन नहीं पाया । धीरे धीरे देश में राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बढ़ते नये नये छोटे राजनीतिक दलों का आगमन हुआ जिनकी राजनीतिक सोच राष्ट्र से संकुचित होकर प्रदेश तक सिमट गई और आगे जो राजनीतिक विकास हुआ उसने राजनीति का दायरा बेहद सिकोड़कर जातिगत , धार्मिक और क्षेत्र विशेष तक छोटा कर दिया ।

आज गिने चुने राजनेता हैं जो अपना राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव रखते हैं। अन्यथा कोई मुस्लिम नेता है तो कोई दलित की राजनीति करता है। कोई खलिस्तान की बात करने में गर्व महसूस करता है तो कोई चीन पाकिस्तान को अपना माई बाप समझकर भारत की और आँखें तरेरता दिखायी देता है। जातिवाद, धर्म और क्षेत्र हमारे चुनाव जीतने के आधार बन रहे हैं । कोई साम्यवाद की बात करता है तो कोई अपने को समाजवादी कहकर गर्व का अनुभव करता है। गांधी जी , राजा राम मोहन राय, आज़ाद और भगत सिंह के आदर्शों की दुहाई देने वाले राष्ट्र को भूलकर अपनी जाति पर केंद्रित होते जा रहे हैं।आरक्षण के नाम पर अनगिनत जातीयाँ आपस में भेद भाव कर रही हैं। आश्चर्य और दुख की बात यह है कि छोटे राज्य भी अपनी ही सीमा में क्षेत्रवाद , जातिवाद और धार्मिक भेदभाव का शिकार हो रहे हैं । स्वर्ग से यह नजारा देख हमारे संविधान के निर्माता और मूल विचारक कितनी लज्जा महसूस करते होंगे जिन्होंने संविधान का आरंभ ही “हम भारत के नागरिक” से करते हुए भारत के किसी भी नागरिक को भारत में कहीं भी रहने और कारोबार करने की स्वतंत्रता दी थी । शायद ही कोई सच्चा भारतीय नागरिक होगा जो कश्मीर की इसी दशा के दुष्परिणामों से खुश होता हो। सरकार ने कश्मीर से धारा ३७० और ३५ ए हटा दी तो पूरा देश ख़ुशी से झूम उठा। स्पष्ट था कि हमारी अंतरात्मा कश्मीर की उस अलगाववादी सोच को स्वीकार नहीं कर रही थी ।

यदि आपसे कोई पूछे कि आप कहाँ के नागरिक हो तो गर्व से कहते हो “ भारत के” फिर आपका राज्य , आपका क्षेत्र और आपकी जातीय पहचान कहाँ छुप जाती है? क्या एक राज्य में रहते हुए आपका किसी दूसरे राज्य से कोई संबंध नहीं ? क्या उत्तर दक्षिण पूरब और पश्चिम के बीच कोई सीमाएँ निर्धारित हैं? जरा सोचिए , उत्तराखण्ड के जन्म की तो बात छोड़ दीजिए , आज़ादी से भी पूर्व क्या इस प्रदेश में दूसरे राज्यों के निवासी निवास एवं रोज़गार नहीं करते थे ? क्या यहाँ के निवासी दूसरे राज्यों के स्थानों पर रोज़गार की तलाश में पलायन नहीं करते थे ? क्या यह सिलसिला अब रुक गया है? राज्य की सीमाओं को सील करने, राज्य में ही दो क्षेत्रों गढ़वाल और कुमायूँ को वैचारिक स्तर पर अलग करने, ब्राह्मण और राजपूत की राजनीति करने, नागरिकों को पहाड़ी और देशी में विभक्त करने से आप कौन सी फसल उगा रहे हैं । अपने ही देश से लगभग दूर हो जाना चाहते है ? प्रदेश को और कितने टुकड़ों में बाँटना चाहते हैं। देश में हिंदू राष्ट्र और हिंदू एकता की बात करने वाले अपने ही परिवार को खोखला कर कमजोर करने पर तुले हैं ।

इतिहास देखिए और बताइए कि क्या देहरादून को बनानेवाले आचार्य द्रोण और गुरु राम राय अपने को पहाड़ी मानकर बसाने आये थे । और अन्य महापुरुषों की बात करें तो क्या उन्होंने भी ऐसा ही सोचा था ?

यह सोच केवल उत्तराखंड में पैदा हो रही हो , ऐसा बिलकुल नहीं है बल्कि पूरे देश में यही नफ़रत की फसल उगाई जा रही है। देश को एक दो नहीं हज़ारों टुकड़ों में बाँटने की साजिस अपना काम कर रही है। उत्तराखण्ड एक देवभूमि है जहां से संस्कारों की गंगा बह कर पूरे देश को पवित्र करती है। प्रदेश सांस्कृतिक रूप से देश का नेतृत्व करता है फिर ऐसा सांस्कृतिक प्रदूषण हमें कहाँ लेकर जाएगा ? जैसा मैंने पहले कहा कि इस प्रदेश का एक एक परिवार अपने भारत देश के लिए जान छिड़कता है। सेना के सर्वोच्च अधिकारी हमारे इसी प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक और हम पी ओ के को भारत में मिलाने की बात करते हैं और दूसरों और ख़ुद को ही भारत से दूर कर लेना चाहते हैं ।

टी वी पर उत्तराखंड के समाचार देख सुन रहा था । दिल के कोनों में समाचार सुन अफ़सोस और दुख हो रहा था। में स्वयं ५० वर्षों से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भा ज पा ( पहले जन संघ ) से वैचारिक रूप से जुड़ा हूँ लेकिन कभी ऐसी स्थिति नहीं देखी । क्या बेटा बड़ा होकर यूँ ही बाप के ओचित्य को चुनौती देता है? यदि ऐसा है तो हम किस संस्कृति का रोना रोते हैं ? संगठन के पद हों अथवा चुनाव के प्रत्याशी , संघ और पार्टी संगठन के मतभेद खुलकर सामने आना निश्चय ही चिंता में डालने वाला है। एक अर्ध शताब्दी के बाद भारत की जनता को स्वाभिमान और अभिमान की अनुभूति हुई है। देश विश्वगुरु बनने का आकांक्षी है। यदि इस तरह के मतभेद बढ़ते रहे तो देश की बर्बादी इसी के सुपुत्रों द्वारा लिखी जाएगी ।

आइये अपने मन के भीतर झांकिये वहाँ एक सच्चा देश भक्त और देव पुरुष बैठा है। उसे पहचानिए , उसका निरादर मत करिए । वो आपकी आत्मा है उसके बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। जातिवाद , क्षेत्रवाद जैसी संकुचित सोच से बाहर निकलये । कुछ बड़ा बनिये , बड़ा करिए । बड़े परिवार की महत्ता को समझये। देश ही हमारा परिवार, नगर, क्षेत्र और प्रदेश है। भारतीय हमारी नागरिकता है, सोच और संस्कृति है। यही हमारी जाति और पहचान है। जो आगे बढ़ेगा देश के लिए करेगा । देश है तो हम हैं । इसे वैचारिक, भाषाई, सांस्कृतिक , क्षेत्र और जातियों में बाँटकर कमजोर मत कीजिए ।

हमे देश में कहीं भी बसने और रहने का अधिकार है तो दूसरों को भी हमारे यहाँ उतना ही सम्मान मिलना चाहिए ।यदि उत्तराखण्ड से जाकर उत्तर प्रदेश में योगी जी देश का नाम रोशन कर सकते हैं , गुजरात से आदरणीय मोदी जी, अमित शाह , मध्यप्रदेश से शिव राज सिंह चौहान , हरियाणा के देवी लाल , दक्षिण से आदरणीय निर्मला सीता रमन , महाराष्ट्र , आसाम और कर्नाटक के अनेक नेता देश की सेवा कर सकते हैं , उत्तराखण्ड के श्री अजीत डोभाल, विपिन रावत और अन्य बहुत से नायक देश की सुरक्षा की गारंटी दे सकते हैं तो आप भी ऐसे ही चरित्रों का अनुशासनात्मक कर देश के निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

 

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