Editorial Archives - Tiranga Speaks https://tirangaspeaks.com/category/editorial/ Voice of Nation Fri, 07 Feb 2025 17:32:01 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 गेर क़ानूनी घुसपैठ – एक अपराध https://tirangaspeaks.com/illegal-cross-border-entry/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=illegal-cross-border-entry https://tirangaspeaks.com/illegal-cross-border-entry/#respond Fri, 07 Feb 2025 17:32:01 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=154 यद्दपि कोई भी देश अपनी सीमा में बिना अनुमति घुसने को अपराध मानता है। कुछ परिस्थितियों में तो गोली तक मार दिये जाने अथवा पूरी ज़िंदगी जेल में डाल दिये जाने का प्रविधान है। इसे अंतर्राष्ट्रीय आचरण कहें अथवा संबंधित सरकार सत्कर्म कि पकड़े गये घुसपैठियों को उनके मूल देश को वापस भेज दे । [...]

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यद्दपि कोई भी देश अपनी सीमा में बिना अनुमति घुसने को अपराध मानता है। कुछ परिस्थितियों में तो गोली तक मार दिये जाने अथवा पूरी ज़िंदगी जेल में डाल दिये जाने का प्रविधान है। इसे अंतर्राष्ट्रीय आचरण कहें अथवा संबंधित सरकार सत्कर्म कि पकड़े गये घुसपैठियों को उनके मूल देश को वापस भेज दे । यदि ऐसे घुसपैठिए सही सलामत वापस कर दिये जायें तो उसे उस देश की भलमनसाहत ही कहा जायेगा। घुसपैठिए वैसे तो कई प्रकार के होते गहैं और उनके दूसरे देश में बिना अनुमति प्रवेश के अलग अलग कारण होते हैं। शरणार्थी इससे अलग होते हैं। कुछ घुसपैठिए आपराधिक परवृत्ति के होते हैं जिनके अवेध प्रवेश के पीछे कोई न कोई बड़ा अपराध होता है जैसे स्मगलिंग , हत्या अथवा आतंक । कुछ क़ानूनी सजा से बचने के लिए दूसरे देश में भाग जाते हैं तो कुछ सरकारों के छिपे एजेंडे को पूरा करने के लिए भी अपनी पहचान बदलकर दूसरे देश में घुस जाते हैं। घुसपैठियों का एक बहुत बड़ा भाग ऐसे लोगों का होता है जो अधिक धन कमाने के चक्कर में दूसरे देशों का रुख़ करते हैं। यदि संबंधित देश का वीज़ा न मिले तो ये लोग विभिन्न हथकंडों का प्रयोग करते हैं। ऐसी घुसपैठ के पीछे मानव तस्करी / कबूतर बाज़ी में लगे एजेंट मुख्य कारण होते हैं। ये एजेंट मोटी रक़म लेकर गेर क़ानूनी तरीक़े से इच्छुक व्यक्ति को दूसरे देश में घुसा देते हैं फिर यह घुसपैठिए अपनी पहचान छिपाकर जब तक संभव हो वहाँ कार्य करते रहते हैं। देखा गया है कि ऐसे घुसपैठियों का जीवन बहुत मुश्किलों भरा रहता है। बिना अनुमति घुसपैठ करने वाले नागरिक का सबसे बड़ा पहलू यह है कि वह ऐसा कर सबसे पहले अपने देश को बदनाम करते हैं । ऐसा संदेश जाता है मानो उस देश में वो भूखों मर रहे हैं अथवा उनके जीवन को गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो गया हो। कभी कभी उनके इस अपराध में पहले से विदेश में रह रहे उनके रिश्तेदार अथवा परिचित भी सहयोग करते हैं।किसी भी दशा में बिना अनुमति किसी देश में घुसना अपराध की श्रेणी में ही समझा जाएगा जिसे कोई भी देश सहज स्वीकार नहीं करता और इस अपराध से कठोरता से निपटता है। बहुत समय से यही समस्या हमारे देश में भी गंभीर रूप धारण किए हुए है इसमें अधिकतर बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए स्थिति को गंभीर बनाये हुए हैं। अपराध की गंभीरता और देश पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुए भी हमारे ही देश के नेता ऐसी घुसपैठ को समर्थन देते हैं । देश कमजोर नहीं, सरकार भी कमजोर नहीं लेकिन हमारे ही अपने हमें निर्बल बनाये हुए हैं । यहाँ तक कि देश की सुरक्षा और डामोग्राफी को भी गंभीर चुनौती उत्पन्न हो रही है। सीधी सी बात है कि ऐसे घुसपैठिए देश के अपराधी हैं और कठोर कार्यवाही के साथ उनके देश को वापस ज़बरदस्ती भेज दिये जाने के पात्र हैं। देश की सरकार चाहे तो इससे आगे भी कठोर कार्यवाही कर सकती है और इसके लिए कोई अन्य सरकार प्रतिरोध करने की अधिकारी नहीं है। अमेरिका द्वारा अपने देश में रह रहे अवेध भारतीयों को वापस भारत भेजने पर आजकल विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। अपने नागरिकों द्वारा ऐसा अपराध करने पर शर्मिंदा होने के स्थान पर हिंदुस्तान की बेइज्जत्ति की दुहाइयाँ दी जा रही हैं। हथकड़ी लगाने पर विरोध प्रकट किया जा रहा है। भला हमारे विपक्ष से कोई पूछे कि अपराधियों को कैसे रखा जाना चाहिए? ऐसा कौन सा सम्मानित कार्य ऐसे नागरिकों द्वारा किया गया है जिसके कारण उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए? वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश की छवि ख़राब कर अपने देश के प्रति भी अपराध किया है जिसके कारण वो किसी सहानुभूति के पात्र नहीं बल्कि उचित सजा के पात्र हैं। ऐसे में सरकार से विशेष मदद की गुहार लगाना मुझे तो हास्यास्पद और आश्चर्यजनक ही लगता है। क्या हम स्वयं पीड़ित होते हुए भी ऐसे अपराध को सामान्य रूप से ले सकते हैं। देश की छवि ख़राब करना कोई छोटा अपराध नहीं कहा जा सकता। ऐसे घुसपैठियों से देश के प्रति किसी प्रेम की अपेक्षा करना भी उचित नहीं होता। अमेरिका यदि अपराधियों को हथकड़ी लगाकर अपराधियों की भाँति सुपुर्द करता है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए बल्कि यदि अमेरिका चाहे तो इसके लिए खर्च किए धन की भी माँग कर सकता है। भारत को बिना संकोच अपने नागरिकों को वापस स्वीकार करना चाहिए। लेकिन भविष्य में कोई भारतीय ऐसा अपराध न करे इसके लिए भी उचित कदम उठाए जाने चाहिए। अब सही समय है, मौक़ा भी है और दस्तूर भी। भारत में रह रहे अवेध घुसपैठियों को ढूँढ ढूँढ कर उन्हें उनके देश को डिपोर्ट कर दिया जाना चाहिए । घुसपैठियों के एक बड़े भाग द्वारा भारत में अवेध तरीक़ों से आधार प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिये गये हैं । देश हित में नागरिक प्रमाणपत्रों की गहन जाँच कर सभी घुसपैठियों की पहचान कर ली जानी चाहिए। मतदाता सूचियों में बढ़ाये गये नागरिकों की विशेष पहचान होनी चाहिए और यदि कोई भारतीय क्रमचारी/नागरिक की ऐसे अपराध में संलिप्तता पायी ज़ाय तो उसके विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। कार्यवाही टुकड़ों में नहीं बल्कि एक निश्चित समय से पूरे देश में शुरू कर लक्ष्य प्राप्ति कर चलायी जानी चाहिए। सरकार किसी भी घुसपैठिए को पकड़ने में सहायता करने पर नागरिकों को उचित उपहार की घोषणा कर दे तो शायद एक माह के अंदर ही सारे घुसपैठिए पकड़े जा सकते हैं। घुसपैठ एक देश व्यापी समस्या है जो देश को कई प्रकार से कमजोर करने के साथ राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता पर प्रश्न खड़े करती है। इस विषय पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और न ही किसी स्तर पर स्वीकार्य होनी चाहिए।घुसपैठ को किसी प्रकार का समर्थन देश द्रोह है इसे उसी संदर्भ में देखा जाना उचित होगा।

 

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गांधी- याद बहुत आते हैं । https://tirangaspeaks.com/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a5%80-%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%ac%e0%a4%b9%e0%a5%81%e0%a4%a4-%e0%a4%86%e0%a4%a4%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a5%a4/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a7%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a6-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25a4-%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%2582-%25e0%25a5%25a4 Thu, 30 Jan 2025 16:27:52 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=87 आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा [...]

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आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।

आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।

आज तीस जनवरी है, परम आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि । राष्ट्रपिता गांधी जी को उनकी स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि । पिता कौन होता है? पिता वह होता है जो अपनी संतान की उत्पत्ति करता है, उसे जीवन का संघर्ष सिखाता है और जीवन पर्यंत अपनी संतानों को संस्कार देता रहता है। महात्मा गांधी ने हमें जन्म तो नहीं दिया फिर भी एक पिता की तरह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करते रहे और बहुत से संस्कार दिए । इसलिए उन्हें राष्ट्र पिता का सम्मान दिया जाना स्वाभाविक है।

गांधी नाम की चर्चा भारत में तब शुरू होती है जब मोहन दास करम चंद गांधी विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर भारत लौटते हैं। और तब से मानो गांधी शब्द हिंदुस्तान की जीवन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है। कोई भी राष्ट्रीय चर्चा बिना गांधी शब्द का उच्चारण किए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती नज़र नहीं आती।कोई दिन नहीं जाता जब गांधी से हमारा वास्ता नहीं पड़ता । रोज़ हमें गांधी याद आते हैं । अनेक देशवासियों की तरह मैंने भी गांधी जी का दर्शन जानने की कोशिश की । बहुत नहीं लेकिन जो कुछ मेरे पल्ले पड़ा , जो संस्कार देश की जनता को मिले , उन्हें कुछ शब्द देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सब कुछ पाओ लेकिन त्याग का दिखावा करो – गांधी जी का जीवन जन्म से लेकर बैरिस्टर बनने तक निश्चित रूप से वैभव पूर्ण रहा होगा अन्यथा उस समय विदेश से बैरिस्टर की पढ़ाई कर लौटना इतना सुविधाजनक तो नहीं था । बैरिस्टर बनने के बाद वकालत में कोई ख़ास प्रसिद्धि पाने का ज़िक्र मैंने नहीं सुना लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई और अंग्रेजों का विरोध कर उन्हें देश का प्रतिनिधि समझने और अपना सम्मान करने हेतु बाध्य कर दिया , यह थी गांधी जी की कूटनीति । ब्रिटिश सरकार ने जो सम्मान गांधी जी को दिया अन्य किसी स्वतंत्रता सेनानी को नहीं दिया ।आख़िर क्यों? अंग्रेज़ी सरकार से पूरे समय उच्च स्तरीय सुविधा प्राप्त कर उनके विरुद्ध नाटक करते रहे। क्या कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया और विषम परिस्थितियों में भी उनके प्रस्ताव को अहमियत देते रहे। गांधी जी की मान्यता इतनी थी कि उनकी एक अपील / सिफ़ारिश पर भगत सिंह की फाँसी टल सकती थी यह बात अलग है कि किन कारणों से ऐसा संभव नहीं हुआ । में यह भी समझने में असमर्थ रहा हूँ की वो कौन सी अभिलाषा अथवा परिस्थिति थी जिसके अंतर्गत दुश्मन , आततायी और क्रूर ब्रिटिश सरकार से महात्मा की उपाधि गांधी जी ने स्वीकार की? हिंदुस्तानी तो दुश्मन के अन्न का एक दाना भी स्वीकार नहीं करता । पूरे जीवन सादगी और त्याग का दर्शन प्रस्तुत कर कांग्रेस पर आधिपत्य बनाये रखा। यह त्याग था अथवा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ? सरदार पटेल को सर्वसम्मत मत मिलने के बाद भी जीरो वोट प्राप्त जवाहर लाल को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे कौन सा बापू चरित्र काम कर रहा था ?यह प्रश्न तो शायद आज भी अनुत्तरित है। लेकिन इतना तो समझा जा सकता है कि कोई तो था जो कांग्रेस को मदारी की तरह नचा रहा था और वो थे हमारे स्वार्थ विहीन राजनीतिज्ञ और महात्मा गांधी जी।

लव जिहाद जिसके नाम से आज खून खराबा और सांप्रयदिक उन्माद भड़क उठता है, यदि फ़िरोज़ ख़ान को गांधी बनाकर उस समय के उस लव जिहाद के बीज को पनपने न दिया होता तो शायद उसके बाद लाखों हिंदू कन्याओं को जघन्य अपराधों से प्रभावित होने से बचाया जा सकता था । बस उसके बाद तो जैसे गांधी नाम का जलवा चल निकला । राष्ट्रपिता कहलाने वाले अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा ले रहे थे तो भावी प्रधान मंत्री की प्रेम कहानियों से राजनीति के मज़े का स्वाद चखा जा रहा था । नेहरू प्रधान मंत्री होते हुए भी अपनी सखी ब्रिटिश नारी से गोपनीय बातें साझा करते थे तो राजनीति के जॉइन से सदाचार और शपथ के अनुपालन का व्यवहार होता था ।उसके बाद आज तक गांधी ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा । कभी इंदिरा गांधी, कभी संजय गांधी , कभी राजीव तो कभी सोनिया और अभी राहुल गांधी के रूप में विशेष कहानियाँ हमारे सामाजिक ज्ञान का पाठ्यक्रम बनी हुई है । इन सबकी इस्लाम परस्ती इनकी राजनीति में हावी न रही होती तो देश आज भी सांप्रयादिकता की आग में न जल रहा होता ।और यह सिलसिला यूँ ही आगे बढ़ते रहने की आशा है।

हमें जो सबसे बड़ा संस्कार हमारे राष्ट्र पिता ने दिया वो है अहिंसा । इस उपदेश ने तो मानों देश में कायरों की फोज ही खड़ी कर दी। ये कैसा पिता था जिसकी एक संतान को अहिंसा और दूसरी को हिंसा का संस्कार मिला। ये वो संस्कार था जिसने भारत की जीवन प्रक्रिया ही बदल दी और आज भी हिंसा और अहिंसा के बीच देश कराहता नज़र आता है।टीस उठती है और बार बार गांधी याद आते हैं वो गांधी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर देश की हाथों की लकीर बन गयें हैं।

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हिंदू राष्ट्र: भिन्नता में एकता की ओर एक दृष्टिकोण https://tirangaspeaks.com/%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a5%82-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%87/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%2582-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b7%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25ad%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587 Mon, 27 Jan 2025 16:51:50 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=64 आजकल हिंदू राष्ट्र को लेकर देश में चर्चाओं का माहौल गर्म है। एक वर्ग इसे समर्थन दे रहा है तो दूसरा विरोध। धार्मिक यात्राएँ और संगोष्ठियाँ हो रही हैं, लेकिन यह मुद्दा धार्मिक और सांप्रदायिक विवादों में उलझा हुआ है। भारतीय समाज में धार्मिक और जातिगत भिन्नता स्वतंत्रता से पहले से ही विद्यमान है। इस [...]

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आजकल हिंदू राष्ट्र को लेकर देश में चर्चाओं का माहौल गर्म है। एक वर्ग इसे समर्थन दे रहा है तो दूसरा विरोध। धार्मिक यात्राएँ और संगोष्ठियाँ हो रही हैं, लेकिन यह मुद्दा धार्मिक और सांप्रदायिक विवादों में उलझा हुआ है। भारतीय समाज में धार्मिक और जातिगत भिन्नता स्वतंत्रता से पहले से ही विद्यमान है। इस कारण कई युद्ध हुए, मानव हत्याएँ हुईं, और देश विभाजन तक हुआ। विभाजन के समय इस समस्या का स्थायी समाधान किया जा सकता था, लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने नहीं दिया। परिणामस्वरूप, लाखों निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। यदि उस समय धार्मिक आधार पर स्पष्ट विभाजन हो जाता, तो शायद वर्तमान परिस्थितियाँ अलग होतीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और भारत को हमेशा के लिए इस त्रुटि का दंश झेलना पड़ा। भिन्नताओं के बावजूद एकता संभव भले ही भारत में धार्मिक और सांप्रदायिक विविधता है, परंतु हमारी परंपरा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की रही है। आध्यात्मिक दृष्टि से सभी धर्म एक ही दिशा में जाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक स्वार्थ ने समाज में वैमनस्य को बढ़ावा दिया है। समस्या की जड़: राजनीतिक और धार्मिक कट्टरता राजनीति में तुष्टिकरण की नीति और धार्मिक कट्टरता दो ऐसे कारण हैं, जो समाज में भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। राजनीतिक स्वार्थ: धर्म और जाति आधारित राजनीति से न तो देश की शांति संभव है और न ही इसकी संप्रभुता सुरक्षित रह सकती है। धार्मिक कट्टरता: धर्म एक व्यक्तिगत आस्था का विषय है। इसका उद्देश्य शांति और सह-अस्तित्व है, न कि किसी अन्य धर्म के प्रति ईर्ष्या और घृणा। समाधान की दिशा में कुछ सुझाव

1. एक राष्ट्र, एक ध्वज: राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अलावा किसी अन्य ध्वज के प्रदर्शन पर रोक होनी चाहिए।

2. भारत की मूल पहचान: देश को ‘भारत’ के नाम से पहचाना जाए। सभी धर्मों को ‘भारतीय’ के रूप में मान्यता दी जाए, जैसे भारतीय सनातन, भारतीय इस्लाम आदि।

3. सर्व धर्म स्वीकार्यता: धर्मनिरपेक्षता के बजाय संविधान में ‘सर्व धर्म स्वीकार्य’ का प्रावधान हो। सभी धार्मिक स्थलों के विवाद समयबद्ध रूप से निपटाए जाएँ।

4. धार्मिक साहित्य की समीक्षा: सभी धर्मों के साहित्य से हिंसा और घृणा फैलाने वाले अंश हटाए जाएँ।

5. समान कानून: जाति और धर्म आधारित विशेष कानून समाप्त कर समान नागरिक संहिता लागू की जाए।

6. शिक्षा में समानता: 18 वर्ष तक की शिक्षा सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य हो। स्कूलों में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया जाए।

7. धार्मिक निर्माण पर नियंत्रण: नए धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक हो।

8. धार्मिक गतिविधियों की सीमा: धार्मिक गतिविधियाँ संबंधित स्थलों तक सीमित रहें।

9. समान मुआवजा नीति: आर्थिक वर्गीकरण के आधार पर सरकारी लाभ और मुआवजा सुनिश्चित किया जाए।

समानता और न्याय के सिद्धांतों को लागू कर देश में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को सशक्त किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि धार्मिक और जातिगत भेदभाव को समाप्त कर समाज में शांति और सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त किया जाए।

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अलविदा डॉ मन मोहन सिंह ! https://tirangaspeaks.com/%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%a1%e0%a5%89-%e0%a4%ae%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%b9/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a1%25e0%25a5%2589-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25b9 Fri, 27 Dec 2024 12:13:56 +0000 https://tirangaspeaks.com/?p=34 कौन कहता है ज़िंदगी मौत से हार जाती है ? २६ दिसंबर की शाम होते होते देश को एक दुखद समाचार से रूबरू होना पड़ा । पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ९२ वर्ष की आयु में इस संसार को अचानक ही अलविदा कह गये और छोड़ गये पीछे अनेक लोगों की भीगी पलके , [...]

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कौन कहता है ज़िंदगी मौत से हार जाती है ? २६ दिसंबर की शाम होते होते देश को एक दुखद समाचार से रूबरू होना पड़ा । पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ९२ वर्ष की आयु में इस संसार को अचानक ही अलविदा कह गये और छोड़ गये पीछे अनेक लोगों की भीगी पलके , तेज़ी से आती गहरी साँसें और सोचने पर मजबूर मश्तिष्क । अनेक लोगों के शोक संदेश बह रहे थे । आज वर्षों से आलोचना कर रही वाणियों के शब्द भी निशब्द दिखायी दे रहे थे । मैं भी सोचने को विवश था कि क्या डॉ मन मोहन सिंह मृत्यु के सामने हार गये हैं ? मुझे नहीं लगता । जो शख़्स साधारण पृष्ठ भूमि से उठकर पूरा जीवन अपनी सादगी, मितव्यता के अर्थशास्त्र और सहनशीलता के साथ अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये संघर्ष करता रहा हो , जिसने अपने कठोर आलोचकों को भी अपना सम्मान करने के लिए बाध्य कर दिया हों।

न सत्ता का नशा और न मनमानी चलने न चलने की चिंता , बस अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहने की प्रतिज्ञा , क्या ऐसा कोई व्यक्ति हार सकता है? कदापि नहीं । उसे तो कर्तव्य पथ का महान शहीद कहना पड़ेगा । ज़िंदगी कभी हारती नहीं , मृत्यु कभी जीतती नहीं बस मंच और कलाकार बदल जाते हैं । मृत्यु एक ज़िंदगी का उद्देश्य पूर्ण हो जाने पर उसे लेकर जाती है तो ज़िंदगी तुरंत उसकी जगह दूसरी ज़िंदगी से उसका प्रति स्थापन कर देती है। हारती है बुराई , आलोचना और दुश्मनी । ज़िंदगी अपना काम पूरा कर निकल लेती है किसी दूसरे काम के लिए और हारी हुई बुराई , आलोचना, कटुता अपना सर पीटकर रह जाती हैं । एक झटके में सारी आलोचना, बुराई और कटुता हार जाती है , समाप्त हो जाती है और दिल से सच्चे मीठे बोल निकलने लगते हैं। व्यक्ति को एक ही क्षण में अपना अंतिम हश्र दिखायी देने लगता है।पलकें झुक जाती हैं, हाथ अनायास ही आपस में जुड़ जाते हैं और मस्तक अनायास ही नमन करने लगता है। उस क्षण ही व्यक्ति को ज़िंदगी और मौत का अंतर समझ आ जाता है। डॉ मन मोहन सिंह का जीवन देश के लिए बहुत बड़ा उदाहरण बनकर आया ।

एक अर्थशास्त्री से राजनीति में अचानक प्रवेश और उस पर देश की लगभग डूब चुकी आर्थिक स्थिति को नई दिशा देकर उभारने का चैलेंज । तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री पी वी नरसिंहाराव ने हीरे की पहचान न की होती तो शायद भारत में आर्थिक सुधारों की पहल ही न होती । जरा सोचिए कितना कठिन चैलेंज था ? जरा सी असफलता नई नई मिली राजनीतिक ज़िंदगी को काल में घसीट सकती थी लेकिन वित्त मंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह ने धैर्य और लगन के साथ देश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर ला दिया । २००४ में प्रधान मंत्री बनने के बाद अमेरिका से परमाणु समझौता और अनेक क्रांतिकारी कदम और सफलताएँ उनकी झोली में आयी । उनके कार्यकाल के अंतिम तीन वर्षों को देखे तो उनके मंत्रीमंडलीय साथियों और वृहद् हस्त के कारण भ्रष्टाचार ने सभी सीमाएँ लांघ दी । सरकार भ्रष्टाचार के दागों से छलनी थी फिर भी यह योद्धा निष्कलंक , निर्भीक और शांत रूप से अपने कर्तव्य पथ पर चलता रहा। कोई आक्षेप, आरोप उनपर व्यक्तिगत रूप से नहीं लगा। वो जानते थे कि कर्मफल का सिद्धांत क्या होता है इसलिए हमेशा स्वयं में आश्वस्त रहते थे। विडंबना यही है कि रोते बिलखते चेहरे , अश्रु बहती आँखें और स्मरण करते मन बस कुछ घंटों , दिनों अधिकतम तेरह दिन सामने खड़े सत्य को एक स्नान के बाद भूल जाते हैं और फिर वही मिथ्या तत्वों से भरी ज़िंदगी शुरू हो जाती है।

फिर एक दिन किसी अंतिम संस्कार में जाना होता है, फिर ज़िंदगी की सच्चाई से सामना होता है बस यूँ ही ज़िंदगी और मौत की हार जीत का सिलसिला ज़री रहता है।कुछ ज़िंदगियाँ विशेष रूप से विशिष्ट उद्देश्य के लिए निश्चित अवधि हेतु हमारे बीच आती हैं और पीछे एक इतिहास छोड़कर चली जाती हैं किसी दूसरे उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए । ऐसी ज़िंदगी अमर हो जाती हैं और छोड़ जाती हैं हमारे लिये अनुकरणीय शिक्षा और कर्म ।काश कि हम लोग लेश मात्र भी उसका अनुकरण कर लें तो देश में डॉ अब्दुल कलाम आज़ाद , रतन टाटा, अटल बिहारी बाजपेयी , पंडित दीन दयाल उपाध्याय, लाल बहादुर शास्त्री और डॉ मनमोहन सिंह जैसी अमर ज़िंदगियाँ हमेशा हमारे बीच पैदा होती रहेंगी।

नमन श्रद्धांजलि ।

 

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