भारतीय जनता पार्टी ने अपने पहले ही घोषणा पत्र में संविधान की अपेक्षा के अनुरूप यू सी सी लागू करने की घोषणा की थी। समय बीतता चला गया और बहुत देर से उत्तराखंड में इस संबंध में पहला कदम रखा गया। बहुत से विद्वानों के विचार, नुक्कड़ चर्चाओं के बाद इस संबंध में कमेटी की घोषणा सरकार द्वारा की गई जिसके बाद निरंतर व घटकों से चर्चा, जनता से राय शुमारी चलती रही और अंततः यू सी सी कमेटी की रिपोर्ट सरकार को साउंड दी गई और अति उत्साह पूर्वक इस रिपोर्ट को सरकार ने स्वीकृत कर क़ानून का रूप दे दिया । जिस तरह से जोशोर के साथ क़ानून का आग़ाज़ हुआ, उसने निहित विषय सामग्री को देख समझ प्रदेश में चर्चाओं का फोर चल निकला । निकलना स्वाभाविक था क्योंकि कई कहावत एक साथ चरितार्थ हो गई। पहली कहावत – खोदा पहाड़ निकली चुहिया । जिस बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद की जा रही थी , ऐसा कुछ विशेष नहीं हुआ। जितनी पड़ी जान प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी , कहीं सुरसुराहट भी नज़र नहीं आयी माँओं तूफ़ान से पहली भी शांति थी और बाद में भी।दूसरी कहावत – कहीं पे तीर कहीं पे निशाना। संविधान की आत्मा और भारतीय बहुसंख्यक समाज की भावनाओं के अनुरूप क़ानून का जो प्रारूप सामने आया उससे निराशा और सरकार की मंशा पर शक स्वाभाविक रूप से सामने आ गया। पहली बात यू सी सी का अर्थ और अभिप्राय ही ऐसे क़ानून से है जो पूरे देश और समस्त नागरिकों पर एक समान लागू हो। कुछ नागरिकों को बाहर रखते हुए एक देश और एक क़ानून की धारणा ध्वस्त हो गई ।
ऐसी कई तकनीकी समस्या भी उत्पन्न हो गई जिससे कई परिस्थितियों में इसका पालन संभवतः न हो पाये। एक और किसी वर्ग की संस्कृति और प्रम्पराओं की धज्जियाँ उड़ी तो इसी नाम पर कुछ को क़ानून के दायरे से ही बाहर रखा गया । जिस समस्या से निजात पाने की आवश्यकता थी उसकी जंगल की आग की तरह नियंत्रण से बाहर हो जाने की स्थिति बनती दिखाई दे रही है। जिस विषय का यू सी सी के माध्यम से समाधान होना चाहिए था उल्टे उसे और गंभीर बना दिया गया । देखा जाय तो यू सी सी में हिंदू समाज के लिए कोई विशेष परिवर्तन की उम्मीद नहीं थी । ऐसा लग रहा था कि यू सी सी का उद्देश्य दूसरे वर्ग विशेषकर मुस्लिम वर्ग को भारत में एक समान क़ानून से मुख्य धारा से जोड़ने का था और वो प्रयास हुआ भी किंतु शायद तीर की गति और प्रभावी क्षेत्र इतना व्यापक हो गया कि जिस प्रदेश में यू सी सी ने जन्म लिया वहीं की संस्कृति को तार तार कर दिया । सारी मेहनत मानों विफलता में बदल गई। बेरोज़गारी की जनप्रतिक्रिय से अभी दामन छोटा भी न था कि एक दूसरी चिंगारी अनावश्यक ही सुलग उठी। लव जिहाद की जिस समस्या से पूरा प्रदेश सुलग रहा था यू सी सी ने मनों उसकी अनुज्ञप्ति ही जारी कर दी। शायद जनता के किसी भी वर्ग ने यह राय संबंधित कमेटी को न दी होगी कि लिव एंड रिलेशन को क़ानूनी मान्यता दे दी जाय। एक पक्ष द्वारा प्रतिक्रिया पर विचार हुआ होगा लेकिन लिव एंड रिलेशन विषय पर विचार करते हुए इसकी गंभीरता और दूरगामी प्रभाव को डर किनार कर दिया गया । अब जॉइन से क़ानून से लव जिहाद को रोका जाएगा ?
जिस संस्कृति का रोना रोकर जनता में रोष व्याप्त हो रहा था , बेटियाँ सूट केस में बंद हो रही थी , माँ बाप की नींद उड़ी रहती थी , यू सी सी में लिव एंड रिलेशन के प्रावधान को देखकर चाहती पीटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा । उत्तराखण्ड विशेषकर देहरादून शिक्षा का मुख्य केंद्र होने के कारण यहाँ पूरे देश से युवक का आगमन होता है। यही वह उम्र होती है जब हमारे बच्चे स्वतंत्रता के एहसास को आरंभ करते हैं, क्या सीखकर जाएँगे यहाँ से ? संपन्न परिवारों की लड़कियों को संपत्ति के लालच में और अधिक लव जिहाद का सामना करना पड़ेगा। ग़रीब वर्ग की लड़कियाँ बाहर से आने वाले संपन्न परिवारों के लड़कों की तरफ़ धड़ल्ले से आकर्षित होंगी। कोई सामाजिक डर, दबाव काम नहीं करेगा। शासन लव बर्ड्स को सुरक्षा देने के लिए विवश होगा कोई आश्चर्य नहीं कि इससे देह व्यापार में भी वृद्धि हो जाय। कुँवारी माताओं की संख्या न चाहते हुए भी इस क़ानून का दंश झेलेगी। इस नियम के पक्ष में अभी तक कोई सामाजिक विद्वान/शास्त्री सामने नहीं आया ही जिसने सरकार के इस निर्णय पर सकारात्मक टिप्पणी की हो। एक चिंगारी को दावानल में बदलते देर नहीं लगती वैसे भी सरकार के साथ बहुत दी समस्यायें लगी रहती हैं। उत्तराखण्ड की जनता वैसे भी किसी न किसी समस्या से त्रस्त होकर आंदोलित रहती है ऐसी परिस्थिति में यदि कोई लव जिहाद जैसी घटना हो गई तो स्थिति नियंत्रण से बाहर होते देर नहीं लगेगी। विषय जनभावनाओं से जुड़ा होने के कारण अत्यंत संवेदनशील है। सरकार को समय रहते इस पर विचार कर यू सी सी में लिव एंड रिलेशन में किए प्राविधानों को निरस्त कर देना चाहिए जो इस देव भूमि की संस्कृति और संस्कारों को कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता।
Leave A Comment