आजकल देश में जहां देखो वहां कुछ लोग नित नए नए आंदोलन के लिये तैयार रहते हैं। कोई आरक्षण मांगने के लिये तो कोई हटाने के लिये। कोई नोकरी मांग रहा है कोई नोकरी जाने पर बवाल किये हुए है और जिन्हें नोकरी मिली है वो अपने वेतन भत्तों को बढ़ाने के लिये आसान लगाए बैठे हैं। अपनी मांगे मनवाने के लिये सार्वजनिक संम्पत्ति को नुकसान, सभ्य नागरिकों का जीना दूभर करना और देश में निर्माण की गति को ठप्प कर देना तो शायद इन लोगो का हथियार बन गया है। हमने भू माफिया का नाम सुना था और एक दबंग रसूखदार की कल्पना की थी जो येन केन प्रकरेण लोगों की भूमि पर कब्जा कर लेता है लेकिन अब पता चल रहा है कि इस कार्य के लिये आपको माफिया बनने की भी आवश्यकता नही है। बस थोड़ा सा चालाकी से काम करने की आवश्यकता है और थोड़ी सी अधिकारियों अथवा जनप्रतिनिधियों की सेवा। बस जहां जुगाड़ भिड़ जाए एक बार अड्डा जमा लीजिए। धीरे धीरे अपने रिश्तेदार और मिलनेवालों को बुलाते रहिये बस बस गया आपका गांव/शहर। अब कभी किसी ने आपके इस अवैध अतिक्रमण के विरुद्ध आवाज उठाने की कोशिश भी की तो तुरंत छाती पीटना शुरू कर दीजिए। देशभर के क्या विफेशों से भी आपके मुफ्त के हमदर्दीये आपके साथ विलाप करने लगेंगे। किराए के रुदालियों का इतना जोर शोर से संगठित विलाप होगा कि सरकार की चूलें हिल जाएंगी।अदालतें मोम्म की तरह पिघलने लगेंगी। मानवता दर्द से कराह उठेगी। जनता असमंजस में आंखे फाड़कर प्रश्नसूचक निगाहों से एक दूसरे को देखने लगेगी। धरती फट जाएगी अम्बर बरसने लगेगा किंतु आप तक आंच नही आ पाएगी। वाह ऐसा शरीफ़ाना खेल भला कहीं और देखने को मिलेगा? सरकारें सोती रही और इस अराजकता के खेल ने देश का कोई शहर कोई रास्ता नहीं छोड़ा जहां अवैध अतिक्रमण ने अपने पैर न फैला लिए हों। अब अगर सरकार जागने का प्रयास भी करे तो कानून व्यवस्था का ऐसा प्रश्न खड़ा कर दिया जाएगा कि सरकार के हाथ पांव फूल जायेगें। किस किस के आंदोलन को सुलझाए।
क्या इस स्थिति का अंतिम पड़ाव अराजकता है? जी हां यदि देश के कानूनों की यही लचर स्थिति रही। इस देश का सभ्य नागरिक भी यह सब देखकर आंखे मूँदता और मुहं बंद रखता रहा तो निश्चित रूप से देश में अराजकता फैल जाएगी।जिसकी लाठी जहां चलेगी वहीं उसका कब्जा हो जाएगा। ऐसी स्थिति बहुत दूर दिखाई नही देती इसलिये बचना है तो जनता को ही आंखें खोलनी होगी। हाथ उठाकर अपनी आवाज़ कानून के समर्थन में उठानी पड़ेगी। रोटी कपड़ा मकान सबका हक है लेकिन यह हक किसी से छीनकर नही लिया जा सकता। यदि कोई आवास हींन है, अक्षम है उसका अधिकार है कि सरकार से अपने पुनर्वास की मांग करे। सरकार और जनता का कर्तव्य है कि उसे उसका अधिकार मिले लेकिन किसी भी स्थिति में कानून से खिलवाड़, देश के संसाधनों की लूट किसी भी प्रकार से क्षमा योग्य नही हो सकती। मानवता और मौलिक अधिकारों की आड़ में कानून को असहाय नही बनाया जा सकता। आज आप पूर्व को रो रहे हैं कल आप पूर्व हो जाएंगे आखिर कंधों से कंधों का यह बॉलीबॉल का खेल कब तक चलेगा?कहीं से तो सिरा पकड़ना होगा। किसी को तो शुरुवात करनी होगी। आइए एक आवाज अवैध अतिक्रमण के खिलाफ भी बुलंद करें। सरकार औऱ उसके भ्रष्ट कर्मचारियों को उत्तरदायी बनाये देश को देश बनाये स्लम्स का द्वीप नही। जो पात्र है उसकी मदद हो लेकिन जो चोर है उसे बख्शीश क्यों?
Leave A Comment